धर्म

सावन के सोमवार को इस मंदिर से निकलती है भगवान् शिव की शाही यात्रा।

Janprahar Desk
30 Jun 2020 7:17 PM GMT
सावन के सोमवार को इस मंदिर से निकलती है भगवान् शिव की शाही यात्रा।
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दोस्तों त्रंबकेश्वर एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो भारत में नासिक शहर से 28 किलोमीटर है और नासिक रोड से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर है त्रंबकेश्वर तहसील केत्रम्बक शहर में बना हुआ है।  यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है जिन्हे भारत में सबसे पवित्र और वास्तविक माना जाता है।

त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की सबसे अद्भुत और असाधारण बात तो यह है कि इसके  तीन मुख  है यानी सर है एक भगवान ब्रह्मा एक भगवान् विष्णु और एक भगवान रुद्र।  इस लिंग के चारो तरफ एक रत्न जड़ित मुकुट रखा गया है जिसे त्रिदेव  मुखोटे के रूप में रखा गया है। कहा जाता है की ये मुकुट पांडवो के समय से यही है। इस मुकुट में हीरा पन्ना और बहुत से बेशकीमती रत्न जड़े हुए है त्रंबकेश्वर मंदिर में इसको सिर्फ सोमवार के दिन 4:00 से 5:00 बजे तक दिखाया जाता  है।

ये मंदिर ब्रह्मगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित है। गोदावरी  नदी किनारे बने त्रंबकेश्वर मंदिर का निर्माण काले पत्थरो से किया गया है। इस मंदिर की वास्तुकला बहुत ही अद्भुत और अनोखी है।

इस  प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण डिस्ने पेशवा बालासाहेब ठाकरे यानि नानासाहेब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का चिन्ह द्वारा 1755 में शुरू हुआ था इस काम का अंत 1786 में संपन्न हुआ तथ्यों के मुताबिक इस भव्य प्राचीन मंदिर का निर्माण कार्य में लगभग 16 लाख रूपए खर्च किए गए थे जिसे उस समय काफी बड़ा रकम माना जाता था।

इस मंदिर के भीतर एक गर्भ ग्रह है जिसमे प्रवेश करने के पश्चात शिवलिंग के सिर्फ आँख  ही दिखाई देती है लिंग नहीं। यदि  ध्यान से देखा जाए तो आगे की तरफ एक इंच के तीन लिंग  दिखाई देते हैं इन तीनों लिंगो को त्रिदेव यानि ब्रह्मा विष्णु महेश का अवतार माना जाता है।

इस मंदिर के परिसर में एक कुंड है उषावर्त जो गोदावरी नदी का स्त्रोत माना जाता है। कहा जाता है कि ब्रम्हगिरी पर्वत से गोदावरी बार-बार लुप्त हो जाया करते थे गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने उषा की मदद ले कर गोदावरी को बंधन से बांध दिया था उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा पानी रहता है। और ये उषावर्त के नाम से जाना चाहता है कुम्भ स्नान के बाद ऋषि इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।

शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म गिरी पर्वत की चोटी तक पहुंचने के लिए 700 सीढिया बनाई गई है और इन्हे पार करने के बाद राम और लक्ष्मण कुंड  मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुंचने पर गौमुख से निकलती हुई गोदावरी नदी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इससे एक पौराणिक कथा भी जुडी हुई है चलिए अब उसके बारे में जानते है की शिव त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां पर उतपन्न क्यों हुए हैं।

पुराणों के अनुसार एक बार महर्षि गौतम और तपोवन में रहने वाले ब्राह्मण की पत्निया  किसी बात पर गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या से नाराज हो जाती है। उन सभी पत्नियों ने अपने पति को गौतम ऋषि का अपमान करने के लिए प्रेरित करती हैं उन ब्राह्मणों ने इसके लिए भगवान गणेश की आराधना की। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उनसे वर मांगने को कहा। तो उन ब्राह्मणों ने भगवान् गणेश से कहा प्रभु किसी  प्रकार ऋषि गौतम को आश्रम से बाहर निकाल दीजिए गणेश जी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी।

तब गणेश जी ने एक दुर्लभ गाय का रूप ले लिया और उनके खेत में जाकर फसल खाने लगे गाय को फसल खाते देखकर  ऋषि गौतम ने हाथ में डंडा ले लिया और उसे वहां से भगाने लगे उनके डंडे का स्पर्श होते ही गाय वहीं गिर कर मर गयी।

 उस समय सारे ब्राह्मण एकत्रित होकर गौ हत्यारे कहकर ऋषि गौतम का अपमान करने लगे ऐसी विषम परिस्थिति को देखकर गौतम ऋषि ने उन ब्राह्मणों से पछताप करने का उपाय पूछा तो उन्होंने कहा की गौतम तुम अपने बाप को बताते हुए तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करो फिर लौटकर यहां 1 महीने तक पछताप करोगे और इसके बाद ब्रम्हगिरी का  एक बार परिक्रमा करो तभी तुम्हारी मुक्ति होगी अथवा यहां गंगा जी को लाकर उनके जल से स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग से भगवान शिवजी की आराधना करो उसके बाद फिर से गंगा जी में स्नान करके इस ब्रम्हगिरी के 11 बार परिक्रमा करो और 100 घरों के पवित्र जल से पार्थिव शिवलिंग को स्नान कराने से तुम्हारा उद्धार होगा उसके बाद भी गौतम ऋषि ने सारे कार्य पूरे कर के पत्नी के साथ तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। तब भगवान् शिव उनसे प्रसन्न हो गए और उनसे वर मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान् शिव से कहा की मुझे गौ हत्या के पाप से मुक्त कर दीजिए।  भगवान शिव ने कहा गौतम तुम सर्वदा निष्पाप है जो गौ हत्या का अपराध है वो तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। ऐसा करने के लिए तुम्हारे आश्रम के ब्राह्मणों को मैं दंड देना चाहता हूं इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि उनके इस कार्य से मुझे आपके दुर्लभ दर्शन प्राप्त हुए हैं अब उन्हें मेरा परम समझ कर उन पर आप क्रोध ना करें।

बहुत सारे ऋषि-मुनियों और देवगन ने वहां उपस्थित होकर ऋषि गौतम के बात  का अनुमोदन करते हुए भगवान शिव से सदा वहीं पर निवास करने की प्रार्थना की फिर भगवान शिव ने उन सब की बात मानकर वहा त्रम्ब्क ज्योतर्लिंग के रूप में वही स्थित हो गए।

मंदिर में भगवान जब शिव की शाही सवारी निकाली जाती है तो वह दृश्य देखने लायक होता है। इस भ्रमण के समय त्रम्केश्वर महाराज के पंचमुखी सोने  के मुखोटे को पालकी  में बिठा कर गांव में घुमाया जाता है। फिर वही स्थित एक प्रसिद्ध घाट में स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखोटे को वापस मंदिर मे लाकर  हीरे जड़ित  स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है यह पूरा दृश्य तक महाराज के राज्य अभिषेक जैसा महसूस होता है। इस यात्रा को देखना बेहद अलौकिक अनुभव है। शिवरात्रि और सावन सोमवार के दिन इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां आने वाले भक्त सुबह स्नान करके अपने आराध्य के दर्शन करते हैं और इसके दर्शन मात्र से ही मनुष्य जीवन की सार्थकता महसूस करते है।

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