
अलविदा नमाज़ के लिए आंखों में बहुत श्रद्धा, पर मस्जिद की दीवारों में शांति की गूंज

सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ही, दिल्ली के जामा मस्जिद में लोगों को ना आने और घर में बैठकर ही नमाज़ अदा करने की सलाह दी गई थी जो कि सबने अच्छे से मानी।
जहां अलविदा नमाज़ की बरखा में हर कोई मस्ज़िद के मिट्टी की खुशबू का आनंद लेता था, वहां नमाज़ हुई पर अमन के पत्तों पर लोगों के शांति के बूंदे भी थीं। आखिरी जुमा, अलविदा के नमाज़ और अल्लाह के दर पर भीड़ के जगह मस्जिद के दीवारों के अलावा एक खालीपन? इस कृत्य के करता धरता भी कोरोना वाइरस के हैवान ही हैं। हालांकि, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ही, दिल्ली के जामा मस्जिद में लोगों को ना आने और घर के रंगों में ही नमाज़ अदा करने के रंग में रहने की सलाह दी गई थी जो कि सबने अच्छे से मानी।
जामा मस्जिद कोरोना में नहीं बल्कि लोगों की टूटी उम्मीदों में कहीं धुंधला दिखाई पड़ा। इस वर्ष, मस्ज़िद में अलविदा के नमाज़ पढ़ी गईं, तो सिर्फ़ वहां के कर्मचारी और बुखारी के परिवार के लोगों की भीड़ की उम्मीद के खालीपन के साथ ही। उनकी एक तस्वीर सामने आई है, जिसमें वे ऐसे हालात भी आयेंगे, इस कल्पना ना कर पाने की बेबसी से रुमाल से आंखों के पानी पोंछते नज़र आए।
दरअसल, सरकारनुसार हर निर्देश और आदेश का ध्यान रखते हुए सभी मुस्लिम लोगों को घर पर ही नमाज़ पढ़ना था। जामा मस्जिद पिछले दो महीनों से श्रद्धालुओं की राह देख रहा है। दुआओं का ख्वाब पूरा करने के रास्ते पर आज किसी ने दस्तक ना दी। शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने सबकी खुशनसीबी और अच्छी जिंदगी की दुआ की।
शुक्रवार के शाम को बुखारी ने यह बयान जारी किया कि काफ़ी श्रद्धालुओं को जामा मस्जिद में नमाज़ अदा करने की इच्छा थी, पर उन्हें घर पर रहने को कहा गया। दूर रहें और सतर्क रहें की बात का ध्यान रखते हुए लोग नहीं आए। सिर्फ कर्मचारियों और मात्र कुछ सदस्यों ने ही, मस्जिद में अलविदा के नमाज़ को पढ़ा और सच्चे दिल से उसे पूरा किया।
गौरतलब है कि उलेमाओं ने यही उम्मीद और प्रार्थना की थी कि सब घर बैठे आखिरी जुमा और अलविदा के नमाज़ से अल्लाह को याद करने का रास्ता खोजें। इस दर्द में ना जाने कितनी चीजें और दुःख के पालने पर सवार होंगी।