

एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी अनलासुर एक ऐसा दैत्य था जो ऋषि मुनियो और साधारण मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था।दैत्य के आचरण से त्रस्त होकर इंद्र सहित सभी देवी-देवता ऋषि मुनि भगवान महादेव से प्रार्थना करने जा पहुंचे और सभी ने महादेव से यह प्रार्थना की कि वह अनलासुर के आतंक का खात्मा करें तब महादेव ने समस्त देवी देवताओं और मुनियों की प्रार्थना सुनकर उनसे कहा कि दैत्य अनलासुर का नाश केवल श्री गणेश ही कर सकते हैं फिर सबकी प्रार्थना पर श्री गणेश ने अनलासुर को निगल लिया तब उनके पेट में बहुत जलन होने लगी इस परेशानी से निपटने के लिए कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब गणेश जी के पेट की जलन शांत नहीं हुए तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठे बनाकर श्री गणेश जी को खाने को दिया यह दूर्वा श्री गणेश जी ने ग्रहण की तब कहीं जाकर उनके पेट की जलन शांत हुई ऐसा माना जाता है कि श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई।
तो चलिए हम आपको बताते हैं कि दूर्वा कैसे चढ़ाई जाती है 21 दूर्वा को एक साथ इकट्ठा करके एक गाँठ बनाई जाती है और कुल 21 गांठे गणेश जी को मस्तक पर चढ़ाई जाती है और यह रोजाना करना चाहिए इसके लिए आप एक समय निर्धारित कर सकते हैं सच्चे मन से दूर्वा चढ़ाने से भगवान गणेश प्रसन्न हो जाएंगे यही नहीं दूर्वा में औषधि गुण भी हैं दूब के रस को हरा रक्त कहा जाता है इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है इस पर नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढ़ती है जिससे लोगों को कम क्षमता वाले चश्मे लगने लगे। दुर्वा घास शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को उत्पन्न करने में सहायक होती है यह सर्दी खांसी एवं कफ विकारों को समाप्त करने में सहायक है दुर्गा मसूड़ों से रक्त बहने और मुंह से दुर्गंध निकलने की समस्या यानी पारियां से राहत दिलाती है दूर्वा रक्त को शुद्ध करती है एवं लाल रक्त कणिकाओं को बढ़ाने में भी मदद करती है जिसके कारण हिमोग्लोबिन करता है दूर्वा घास पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण शरीर को सक्रिय ऊर्जा युक्त बनाए रखने में बहुत सहायता करती है यह अनिद्रा रोग थकान तनाव जैसे रोगों में प्रभाव कारी है।
