
जब भी कभी महाभारत का जिक्र होता है तो दानवीर कर्ण का नाम जरूर सामने आता है। करण महाभारत काल की प्रमुख पात्रों में से एक थे करण को महाभारत का सर्वश्रेष्ठ योद्धा और सर्वश्रेष्ठ दानी माना जाता है। इसी कारण कर्ण को महाभारत का सबसे लोकप्रिय पात्र माना जाता है।
करण कुंती और सूर्य के अंश से जन्मे थे उनका जन्म एक ख़ास कवच और कुंडल के साथ हुआ था जिसे पहनकर दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें परास्त नहीं कर सकती थी। कर्ण की खासियत ये थी कि वह कभी भी किसी को दान देने से पीछे नहीं हटते
थे उनसे जो भी जो कुछ मांगता था तो वह दान जरूर देते थे और महाभारत के युद्ध में यही आदत उनके वध की वजह बनी थी।
कर्ण के पास जो कवच और कुण्डल थे उनके रहते महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत नहीं हो सकती थी। इसी कारण युद्ध में पांडवों को हार से बचाने के लिए अर्जुन के पिता देवराज इंद्र ने कर्ण से उनके कवच और कुंडल लेने की योजना बनाई थी।
कर्ण जब दोपहर में सूर्य देव की पूजा कर रहे थे तब इंद्र एक भिक्षुक का रूप धारण करके उनसे कवच और कुंडल मांग लेता है सूर्य देव इंद्र की इस चाल के बारे में कर्ण को सावधान भी करते हैं। इसके बावजूद वह अपने वचन से पीछे नहीं हटते हैं।
कर्ण के इस दान प्रियता से खुश होकर इंद्र ने उनसे कुछ मांगने को कहता है लेकिन कर्ण यह कहकर मना कर देते हैं कि दान देने के बाद कुछ मांग लेना दान की गरिमा के विरुद्ध है तब देव राज इंद्र कर्ण को अपना शक्तिशाली अस्त्र राशि प्रदान करते हैं जिसका प्रयोग वह केवल एक बार ही कर सकते थे।
आपको बता दें कि जब महाभारत युद्ध चल रहा था तब श्री कृष्ण के इशारे पर अर्जुन ने निहथे कर्ण का वध कर देता है और कवच और कुंडल ना होने की वजह से उनकी प्राण चले जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि कर्ण के कुंडल और कवच के साथ में इंद्र स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सका क्योंकि उसने झूठ से इसे प्राप्त किया था। ऐसे में उसने कवच और कुंडल को समुंदर के किनारे किसी स्थान पर छुपा दिया ऐसा माना जाता है उसी दिन से सूर्य देव और समुंदर देव दोनों मिलकर उस कवच और कुंडल की सुरक्षा करते हैं।
लोक मान्यता है कि इस कवच और कुंडल को भारत की उड़ीसा राज्य के पुरी के निकट कोणार्क में छुपाया गया है और कोई भी आज तक इस जगह पर नहीं पहुंच पाया