

भगवान विष्णु का यह मंदिर 364 दिन बंद रहता है साल के 1 दिन सूरज ढलने से पहले खुलता है मंदिर। मंदिर में भगवान की चतुभुज मूर्ति विराजमान है समुद्र तल से करीब 12000 फीट ऊंचा स्थित इस मंदिर में लोगों की अटूट आस्था है।
आपको बता दें कि उत्तराखंड के चमोली में स्थित यह मंदिर बंशी नारायण के नाम से जाना जाता है भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह सिर्फ 1 दिन के लिए खुलता है यानी कि 1 दिन भगवान विष्णु सभी को दर्शन देते हैं।
बता दें कि इस साल यह मंदिर 3 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन खुलेगा ऐसी मान्यता है कि रक्षाबंधन के मंदिर खुलता है और सूरज ढलने से पहले उसके कपाट बंद हो जाते हैं। कुंवारी कन्याओं के साथ ही विवाहिता भगवान को राखी बांधने के बाद भाइयों की कलाई पर रख बांधती है और सूर्यास्त मंदिर के कपाट 1 साल के लिए फिर बंद हो जाते हैं। लेकिन भगवान विष्णु के इस मंदिर तक पहुंचना हर किसी के लिए संभव नहीं क्योंकि यह मंदिर समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर है और यहां पहुंचने के लिए कई किलोमीटर दूर खड़े पहाड़ को पैदल चलकर पार करना पड़ता है। यह धाम प्रसिद्ध पहाड़ी शैली में बना है। 10 फुट ऊंचे मंदिर में भगवान की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है परंपरा के अनुसार यहां मंदिर के पुजारी राजपूत हैं वहां के एक पुजारी के मुताबिक भगवान को राखी बांधती है भगवान स्वयं उनकी रक्षा करते हैं।
चलिए अब आपको मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा बताते हैं इस कथा के अनुसार एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार किया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने पर माता लक्ष्मी परेशान हो गयी और वह नारद मुनि के पास गयी की भगवान विष्णु कहां पर है जिसके बाद नारद मुनि ने मां लक्ष्मी को बताया कि वो पाताल लोक में है और द्वारपाल बने हुए हैं
नारद मुनि माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु को वापस बुलाने का उपाय बताया उन्होंने कहा कि आप श्रवण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा दे ,रक्षा सूत्र बांधने के बाद राजा बलि से उन्हें वापस मांग ले इस पर माता लक्ष्मी ने कहा कि मुझे पाताल लोक जाने का रास्ता नहीं पता क्या आप मेरे साथ पाताल लोक चलेंगे इस पर उन्होंने माता लक्ष्मी के आग्रह को स्वीकार किया और वो उनके साथ पाताल लोक चले गए इसके बाद नारद मुनि के अनुपस्थिति में कलकोठ गाँव के जार पुजारी ने बंसी नारायण की पूजा की तब से यह परंपरा चली आ रही है।
रक्षाबंधन के दिन कलकोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन आता है इसी मक्खन से वहां पर प्रसाद तैयार होता है भगवान बंसी नारायण की फुलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं इस मंदिर में श्रवण पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रंगार भी होता है इसके बाद गांव के लोग भगवान नारायण को रक्षा सूत्र बांधते हैं।
