

हम जब अकाश की ओर देखते है तो तारे अकाश में इस तरह टिमटिमा रहे होते है। जैसे वे अकाश में खेल रहे हो। इन्ही तारों में से एक तारा है उसका नाम है ध्रुव तारा, जो कि उत्तरी ध्रुव में स्थित है। अगर बात करें हिंदू के पौराणिक ग्रंथों कि तो उसमें ध्रुव से ध्रव तारा बनने तक की एक कथा गाथा का उल्लेंख किया गया है। तो आइए जानते है इस कथा के बारे में...
ध्रुव तारा की कथा-
विष्णु पुराण को हिंदू धर्म में पौराणिक ग्रंथों में से एक कहा जाता है। विष्णु पुराण के मुतबित कहा जाता है, चिरकाल में बालक ध्रुव ब्रह्मा जी के पुत्र मनु के पोते थे। इनके पिता का नाम राजा उतान्पाद था। जिन्होंने 2 शादियां की थीं। उनकी एक पत्नी का नाम सुनीति और दूसरी पत्नी का नाम सुरुचि था। सुनीति के गर्भ बालक ध्रुव का जन्म हुआ। सुरुचि चाहती थी कि उसका पुत्र उत्तम उत्तराधिकारी बने। एक ध्रुव खेल-खेल में अपने पिता की गोद में बैठ गया तो राजा उतान्पाद की दूसरी पत्नी सुरुचि उसे गोद से उतार दिया और कहा तुम राजा के गोद में बैठने लायक नहीं हो... इसे सुनकर ध्रुव अत्यंत दुखी हो गए।
कुछ समय बाद वो अपनी मां सुनीति के पास गए और अपनी मां से पूछा, हे माते! मुझे पिता की गोद में बैठने क्यों नहीं दिया गया? तब सुनीति ने उत्तर दिया कि बेटे अगर गोद में ही बैठना है तो प्रभु की गोद में बैठो। वे सबके पिता हैं। धुव्र ने अपनी मां से पूछा की कहां मिलेंगे भगवान? तब रानी सुनिति कहा इसके लिए तुम्हें कठिन तप करना होगा। ये सुन ही ध्रुव वन की ओर चल दिए। ये जान नारद जी ने उन्हें वन में रोका और लौट जाने की बात कही, लेकिन ध्रुव अपनी बात पर अडे रहें।
ध्रुव ने की थी घोर तपस्या
जब ध्रुव अपनी बात से नहीं हटे तो अंत में नारद जी ने उन्हें ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र जाप करने की विधि बताई। जिसके बाद ध्रुव ने 6 महीने तक कठिन तपस्या की। 6 महीने बाद भगवान श्रीहरि विष्णु जी ध्रुव के सामने प्रकट होकर बोले- हे वत्स! मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। मांगों क्या मांगना चाहते हो। तब ध्रुव ने प्रभु की गोद में बैठने की इच्छा प्रकट की। इसके बाद श्रीहरि विष्णु ने उन्हें अपने गोद में बिठाया और मरणोपरांत ध्रुव तारा बनने का वरदान दिया।