धर्म

क्या आप जानते है नंदी को माना जाता है शिव का गुरु ?

Janprahar Desk
1 July 2020 10:18 PM GMT
क्या आप जानते है नंदी को माना जाता है शिव का गुरु ?
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ये तो आप सभी ने देखा होगा जब  कभी भी आप लोग शिव मंदिर गए होंगे तो की  शिव मंदिर में भगवान् शिव के साथ नंदी हमेशा मौजूद होते है लेकिन आज मैं आपको अपने इस आर्टिकल से  एक ऐसे मदिर के बारे में बताउंगी जहा भगवान् शिव के साथ नंदी मौजूद नहीं है और इसके पीछे का कारण भी बताउंगी।

भगवान शिव के हर मंदिर में आपने उनके साथ उनका परम भक्त नंदी अवश्य देखा होगा जो उन के साथ ही विराजमान देखा जाता है। दुनिया भर में हजारों लाखों ऐसे मंदिर हैं जहां भगवान शिव के समीप हमेशा उनका परम भक्त नंदी रहता है लेकिन आज जिस शिव मंदिर की बात कर रहे हैं यहां पर भगवान शिव के प्रिय वाहन नंदी उनके साथ नहीं है।

जी हां यह सच है और यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव के भक्त नंदी उनके साथ नहीं है ये मंदिर कपालेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।

तो आइये जानते है की भगवान शिव  मूर्ति के  सामने उनके प्रिय वाहन नंदी क्यों नहीं है ?

इसके पीछे का कारण भी बहुत ही दिलचस्प है. बात उस समय की है जब व्रह्म देव के पांच मुख थे। चार मुक्त तो  भगवान की अर्चना करते थे लेकिन एक मुख उनकी बुराई करता था।  तब भगवान शिव ने उनके उस मुख को ब्रह्मदेव के शरीर से अलग कर दिया जिसकी वजह से भगवान शिव को ब्रह्महत्या का पाप लगा। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव पूरे ब्रह्मांड में घूमे लेकिन उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति का उपाय नहीं मिला।  जब वह घूमते हुए समेश्वर गए  बछड़े द्वारा न केवल भगवान शिव को मुक्ति का उपाय बताया गया बल्कि उनको साथ लेकर वह चले गए।

बछड़े के रूप में कोई और नहीं बल्कि स्वयं नंदी थे उन्होंने भगवान शिव को गोदावरी के राम कुंड में स्नान करने को कहा क्योंकि वहा स्न्नान करने से ही भगवान शिव ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पा सके। नंदी की वजह से भगवान शिव भगवान ब्रह्मा की हतया के  दोष से मुक्त हो गए। शिव ने उन्हें

गुरु बना लिया इसीलिए उन्होंने इस मंदिर में स्वयं के सामने बैठने से नंदी को मना कर दिया।

 नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी इलाके में गोदावरी तट के पास कपालेश्वर महादेव मंदिर है भगवान शिव जी ने यहाँ निवास किया था ऐसा पुराणों में कहा गया है कि देश में पहला मंदिर है जहां भगवान शिव जी के सामने नंदी नहीं है। यही इसकी विशेषता है।

और कथाओं के अनुसार 1 दिन वह समवेश्वर में बैठे हुए थे तब उनके सामने ही  एक गाय और उसका बछड़ा एक ब्रह्मण के घर के सामने खड़े थे वह ब्राह्मण बछड़े की नाक में रस्सी डालने वाला था। बछड़ा उसके विरोध में था ब्रह्मण की  नीति के विरोध में बछड़ा उसे मारना चाहता था उस वक्त गाय ने उसे कहा कि बेटे ऐसा मत करो तुम्हें ब्रह्महत्या का पाप लग जाएगा। बछड़े ने उत्तर दिया की  ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति का उपाय मुझे मालूम है। यह संवाद सुन रहे शिवजी के मन में उत्सुकता जागृत हुई बछड़े ने नाक में रस्सी डालने के लिए आये ब्राह्मण को अपने सींग से मारा ब्राह्मण मर गया। ब्रह्म हत्या से बछड़े  का काला पड़ गया उसके बाद बछड़ा वहां से निकल पड़ा शिव जी भी उसके पीछे पीछे चल दिए।  बछड़ा गोदावरी नदी के रामकुंड में आया। उसने वहां स्नान किया उस स्न्नान से उसको ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गयी बछड़े को अपना सफ़ेद रंग भी फिरमिल गया।  उसके बाद शिव जी ने भी वहा स्नान किया और उन्हें भी वहा ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल गयी। इसी गोदावरी नदी के पास 1 डिग्री थी शिवजी वहा चले गए उन्हें देख गाय का बछड़ा यानी की नंदी भी वहा आया। नंदी के कारण ही शिवजी ब्रह्म हत्या से मुक्ति पा सके इसीलिए उन्होंने  नंदी को अपने सामने बैठने को मना किया इसी कारण इस मंदिर में नंदी नहीं है।

कहते हैं भगवान राम ने इसी कुंड में अपने पिता का श्राद्ध भी किया था यानी कि राजा दशरथ का श्राद्ध किया था इसके अलावा इस परिसर में काफी मंदिर मौजूद है। कपालेश्वर मंदिर के ठीक सामने गोदावरी नदी के पार प्राचीन सुंदर नारायण मंदिर है। साल में एक बार हरिहर महोत्सव होता है उस वक्त बालेश्वर और सुंदर नारायण दोनों भगवानों के मुखोटे गोदावरी नदी पर लाए जाते हैं और वहां उन्हें एक दूसरे से मिलाया जाता है उनका अभिषेक होता है  इसके अलावा महाशिवरात्रि को इस  मंदिर में बड़ा उत्सव होता है और सावन में इस मंदिर में शिव के भक्तो की लड़ी लग जाती है।

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