धर्म

आखिर क्यों मनाया जाता है वट सावित्री व्रत क्या है रहस्य ?

Janprahar Desk
28 May 2020 11:32 AM GMT
आखिर क्यों मनाया जाता है वट सावित्री व्रत क्या है रहस्य ?
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आखिर क्यों मनाया जाता है वट सावित्री व्रत क्या है रहस्य ?

जैसा की हम सब जानते है की भारत एक त्योहारों का देश है यह हर दिन किसी न किसी त्यौहार के रूप में मनाया जाता है |  तो इसी तरह वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है. पूर्णिमानता कैलेंडर को उत्तरी भारत के प्रदेशों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब व हरियाणा आदि में फॉलो किया जाता है, इसलिए यह त्यौहार मुख्य रूप से इन जगहों पर ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है| शादीशुदा महिलाएं अपने पति की भलाई और उनकी लम्बी उम्र के लिए इस व्रत को रखती हैं| 

वट सावित्री के व्रत के पीछे जुड़ा रहस्य 

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यह व्रत सत्यवान की बहादुर पत्नी सावित्री को समर्पित किया गया है, जिन्होंने अपने मृत पति के जीवन पर विजय प्राप्त की थी। यहां तक कि त्यौहार का नाम आदर्श भारतीय विवाहित महिला, सावित्री के बाद व्रत सावित्री पूजा के नाम पर रखा गया है। वाट सावित्री पूजा से जुड़ी कथा के अनुसार सतयुग में सावित्री का जन्म विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए अठारह वर्षों बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसके बाद सावित्रीदेवी ने उन्हें तेजस्वी कन्या के जन्म का वरदान दिया। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया। सावित्री के बड़े होने पर राजा की बहुत कोशिश करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला तो उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा कि तुम योग्य हो स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो।’ पिता की बात मान कर सावित्री मंत्रियों के साथ यात्रा के लिए निकल गई। कुछ दिनों तक ऋषियों के आश्रमों और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आई।

इस समय उसके पिता के साथ देवर्षि नारद भी बैठे हुए थे। उसने उन्हें देख कर प्रणाम किया। राजाअश्वपति ने सावित्री से उसकी यात्रा का समाचार पूछा। सावित्री ने कहा, ‘पिता जी! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग्य हैं। अत: मैंने मन से उन्हीं को अपना पति चुना है।’ नारद जी सावित्री की बात सुनकर चौंक उठे और बोले, ‘राजन! सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है।

सत्यवान के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं, वह वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं, अपनी दृष्टि खो चुके हैं। सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु केवल 1 वर्ष शेष रह गई है। किन्तु लाख मना करने पर भी सावित्री नहीं मानी। सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया। धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुंचा जिसमें सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी। सावित्री ने उसके चार दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया। पति एवं सास-ससुर की आज्ञा से सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-फूल और लकड़ी लेने के लिए गई। अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान के सिर में भयानक दर्द होने लगा और वह पेड़ से नीचे उतरकर पत्नी की गोद में लेट गया। उसी समय यमराज आ गए और उन्होंने सत्यवान के प्राण हरण कर लिए। जब वो सत्यवान की आत्मा को अपने साथ ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी। धरती लोक से यमलोक की और सावित्री भी जाने लगी। पति की तरफ इतनी भक्ति देख कर यमराज सावित्री से खुश हुए। और उन्हें तीन वर मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने पहले अंधे सास ससुर की आंखे मांगी। यमराज ने कहा एवमस्तु कहा। दूसरे वरदान में उसने अपने पिता के लिए सौ पुत्र मांगे।

यमराज ने दूसरा वरदान भी दे दिया। अब तीसरे वरदान की बारी थी। इस बार सावित्री ने अपने लिए सत्यवान से तेजस्वी पुत्र का वरदान मांगा। यमराज एवमस्तु कह कर जाने लगे तो सावित्री ने उन्हें रोकते हुए कहा। पति के बिना पुत्र कैसे संभव होगा। ऐसा कह सावित्री ने यमराज को उलझन में डाल दिया। बाध्य होकर यमराज को सत्यवान को पुनर्जीवित करना पड़ा। इस प्रकार सावित्री ने सतीत्व के बल पर अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया। सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। सत्यवान फिर से जीवित हो उठे और सावित्री ने तब वट वृक्ष के फूल को तोड़कर जल ग्रहण कर अपना उपवास तोड़ा। तभी से यह व्रत वट सावित्री व्रत कहलाता है। स्त्रियां इस व्रत को सावित्री की तरह ही यमराज से अपने पतियो की जान की रक्षा करने के लिए करती है।

वट सावित्री व्रत का महत्व 

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वट सावित्री व्रत का महत्त्व करवा चौथ व्रत के महत्त्व समान ही होता है. वट सावित्री के व्रत में कई लोग 3 दिन का उपवास रखते है | 3 दिन बिना खाने के रहना मुश्किल है, इसलिए पहले दिन रात को खाना खा लेते है, दुसरे दिन फल फूल खा सकते है, व् तीसरे दिन पूरा दिन का व्रत रहते है| रात में पूजा के बाद ये व्रत पूरा होता है. महिलाएं दुल्हन की तरह अपना साज श्रंगार करती है| 

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