

हिंदुओं के चार धामों में एक धाम बद्रीनाथ भी है बद्रीनाथ धाम को लेकर लोगों के बीच मान्यता है कि यहां कभी भगवान शिव और देवी पार्वती का बास हुआ करता था।
उत्तराखंड राज्य में स्थित अलकनंदा नदी के किनारे बद्रीनाथ धाम है इसे बद्रीनारायण मंदिर भी कहते हैं हिंदू शास्त्रों के मुताबिक एक बार भगवान विष्णु काफी लंबे समय से शेषनाग की शैय्या पर विश्राम कर रहे थे। ऐसे में उधर से गुजरते हुए नारद जी ने उन्हें जगा दिया इसके बाद नारदजी उन्हें प्रणाम करते हुए बोले कि आप लंबे समय से विश्राम कर रहे हैं इससे लोगों के बीच आपका उदाहरण आलस के लिए दिया जाने लगा है यह बात ठीक नहीं है। नारद जी की ऐसी बातें सुनकर भगवान विष्णु ने शेषनाग की शैय्या को छोड़ दिया और तपस्या के लिए एक शांत स्थान ढूंढने निकल पड़े विष्णु जी हिमालय की ओर चल पड़े इस दौरान उनकी नजर पहाड़ों पर बने बद्रीनाथ पर पड़ी। विष्णु जी को लगा कि है तपस्या के लिए अच्छा स्थान साबित हो सकता है तभी विष्णु जी उस कुटिया की ओर गए तो देखा कि वहां पर भगवान शिव और माता पार्वती विराजमान थी। यह कुटिया उनका घर था इसके बाद विष्णु जी इस सोच में पड़ गए कि अगर वे स्थान को तपस्या के लिए चुनते हैं तो भगवान शिव प्रतीत हो जाएंगे इसलिए उन्होंने उस स्थान को ग्रहण करने का एक उपाय सोचा।
विष्णु जी ने एक शिशु का अवतार लिया और बद्रीनाथ के दरवाजे पर रोने लगे इस दौरान बच्चे के रोने की आवाज सुनकर माता पारवती का ह्रदय द्रवित हो गया और वे उस बालक को गोद में उठाने के लिए बढ़ने लगी तभी शिव जी ने उन्हें मना किया कि वे इस शिशु को गोद में भी लेकिन वे नहीं माने वह शिवजी से कहने लगी कि आप कितने निर्दई हैं और एक बच्ची को कैसे रोता हुए देख सकते हैं। इसके बाद पार्वती जी ने उस बच्चे को गोद में उठा लिया और उसे लेकर घर के अंदर आ गई उन्होंने शिशु को दूध पिलाया और उसे चुप कराया बच्चे को नींद आने लगी तो पार्वती जी ने उसे घर में सुला दिया।
इसके बाद शिवजी और पार्वती जी पास के एक कुंड में स्नान करने के लिए चले गए जब वह वापस आए तो देखा कि घर का दरवाजा अंदर से बंद था इस पर पार्वती जी ने उस बच्चे को जगाने की कोशिश करने लगी तो शिव जी ने उनसे मना कर दिया उन्होंने कहा अब उनके पास दो ही विकल्प हैं या तो यहां की हर चीज को जला दें या फिर यहां से कहीं और चले जाएं। शिव जी ने पार्वती जी से यह भी कहा कि वे भवन को जला नहीं सकते हैं क्योंकि यह शिशु उन्हें बहुत पसंद था और प्यार से उसे अंदर सुलाया था इसके बाद शिवजी और पार्वती जी उस स्थान से चल पड़े और केदारनाथ पहुंचे वहां पर उन्होंने अपना स्थान बनाया। वही तब से यह बद्रीनाथ धाम विष्णु जी का स्थान बन गया।
