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CM War उत्तर प्रदेश: राजनीति में किस तरह अपना रहे जातीय रस्साकशी

Janprahar Desk
26 July 2021 7:13 PM GMT
CM War उत्तर प्रदेश: राजनीति में किस तरह अपना रहे जातीय रस्साकशी
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CM War उत्तर प्रदेश: राजनीति में किस तरह अपना रहे जातीय रस्साकशी

दलितों व अति पिछड़ों की राजनीतिक गोलबंदी से राज्य की बड़ी ताकत बनीं और चार बार सत्ता में आ चुकी मायावती एक बार फिर ब्राह्मणों को खुश करने की कोशिश में जुट गयी हैं. मायावती ब्राह्मणों का समर्थन हासिल करने के लिए तो रणनीति बना रही हैं, लेकिन दलित आधार को एकजुट रखे बिना उच्च जातियों का समर्थन उन्हें सत्ता तक शायद ही पहुंचा सके. नाव जीतने की जातीय फॉर्मूला कितनी तेजी से बदलता रहता है, यह आजकल उत्तर प्रदेश में देखा जा सकता है. वहां अगले साल की शुरुआत में यानी कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं.

उधर, सवर्णों की पार्टी के रूप में जानी जानेवाली भाजपा दलितों व पिछड़ों के लिए लाल कालीन बिछाये बैठी है. तीस साल से सत्ता से बाहर और हाशिये पर पहुंच चुकी कांग्रेस प्रियंका गांधी के सहारे ब्राह्मणों, दलितों व मुसलमानों के परंपरागत वोट बैंक को पुनर्जीवित करने की कोशिश में है, तो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने मजबूत यादव-मुस्लिम आधार में भाजपा से खिन्न चल रही जातियों को खींचने की रणनीति बना रहे हैं.

क्या है इनकी रणनीति...

बिहार चुनाव में पांच सीटें जीतकर महागठबंधन का खेल बिगाड़नेवाले ऑल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी में दांव आजमायेंगे. उन्होंने भाजपा से नाराज होकर एनडीए से अलग हुए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ भागीदारी संकल्प मोर्चाबनाया है, जिसमें बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी, प्रजापतियों की राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी, राष्ट्रीय उदय पार्टी और जनता क्रांति पार्टी भी शामिल होंगी, ऐसे बयान आये हैं. आपऔर भीम आर्मी को भी दावत दी गयी है.

दलित एवं पिछड़ी जातियों के भीतर इस राजनीतिक जोड़-तोड़ ने छोटी या कम संख्यावाली जातियों में भी सामाजिक-राजनीतिक सशक्तीकरण का काम किया है. वे भी सत्ता में अपनी भागीदारी के लिए संगठित हुए हैं. वे किसी भी तरफ जा सकते हैं, जहां अधिक से अधिक भागीदारी का आश्वासन मिले. इससे उत्तर प्रदेश का जातीय चुनावी रण बहुत रोचक हो गया है.

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