

कोलकाता, 21 जनवरी । पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रवादी आइकन और स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस साल हाई-वोल्टेज चुनावी लड़ाई लड़ने वाले राजनीतिक दलों के लिए नया मुद्दा बनने वाले हैं। केंद्र ने हर साल 23 जनवरी को बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। वहीं बुधवार को, भारतीय रेलवे ने अपनी सालगिरह समारोह के आगे हावड़ा-कालका मेल का नाम बदलकर नेताजी एक्सप्रेस कर दिया है।
रेल मंत्रालय ने कहा, भारतीय रेलवे को 12311/12312 हावड़ा-कालका एक्सप्रेस का नाम नेताजी एक्सप्रेस के तौर पर घोषित करने को लेकर खुशी महसूस हो रही है, क्योंकि नेताजी ने भारत की स्वतंत्रता और विकास को एक्सप्रेस मार्ग पर रखा था। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी ट्वीट किया, नेताजी के पराक्रम (वीरता) ने भारत को स्वतंत्रता और विकास के एक्सप्रेस मार्ग पर लाकर खड़ा किया। मैं नेताजी एक्सप्रेस की शुरुआत के साथ उनकी जयंती मनाने के लिए रोमांचित हूं।
स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस जी के अविस्मरणीय योगदान को नमन करते हुए उनकी जन्मजयंती अब पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जायेगी।
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) January 22, 2021
भारतीय रेल ने उनकी स्मृति में हावड़ा-कालका मेल को नेताजी एक्सप्रेस के नाम से चलाने का निर्णय लिया है।
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सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और उसकी कट्टर प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच महत्वपूर्ण राज्य विधानसभा चुनाव से पहले इस बार बोस की विरासत और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। दोनों दल बोस की जयंती पर बोस के सच्चे ध्वजवाहक और बंगाली अस्मिता (गौरव) को परिभाषित करने वाले सच्चे देशभक्त के रूप में उभरने के लिए बेताब हैं।
Rarely ever in history has the enigma of a leader lived on for more than half a century after his demise. Netaji Subhas Chandra Bose may have "died" in an air crash in August 1945, but for those who believe in him, he lives on and on as the ellusive "#GumnamiBaba". pic.twitter.com/Lf89L06SZA
— IANS Tweets (@ians_india) January 22, 2021
बोस के परपोते इंद्रनील मित्रा ने आईएएनएस को बताया, यह अब एक आम बात हो गई है। हमें बहुत बुरा लगता है, क्योंकि राजनीतिक दल हर साल नेताजी के प्रति लोगों की भावनाओं के साथ खेलते हैं। इस बार यह और भी मजेदार है, क्योंकि चुनाव करीब आ रहा है। चुनाव की गर्मी खत्म होते ही नेताजी एक बार फिर गुमनामी में डूब जाएंगे और हकीकत में कुछ नहीं होगा। केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने भारत के स्वतंत्रता नायक के कद को काफी हद तक तुच्छ बनाया है। हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों ने विधानसभा चुनावों को हिंदू राष्ट्रवाद और बोस पर बंगाली गौरव के बीच एक लड़ाई बना दिया है, वहीं उनकी मृत्यु का रहस्य अभी भी कायम है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी द्वारा प्रायोजित एक उच्चस्तरीय समिति की घोषणा पहले ही कर दी है, जो बंगाल में सालभर चलने वाले कार्यक्रम की जिम्मेदारी संभालेगी। कवि शंखा घोष और बोस के परिजन सुगाता बोस भी समिति के सदस्य हैं, जो वर्ष भर हर जिले में उनकी जयंती मनाएंगे।
सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार इस अवसर पर हर जिले में बोस की तस्वीरें और मूर्तियों पर माला चढाने के साथ उनकी जयंती मनाने के लिए तैयार है, उसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम और फिल्म की स्क्रीनिंग होगी। पार्टी को बंगाली संस्कृति से गहराई से जुड़ा दिखाने के लिए, तृणमूल कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार राज्य के आदर्श व्यक्ति को सम्मान देने की कोशिश कर रही है। ममता बनर्जी 23 जनवरी को एक जनसभा को संबोधित करने वाली हैं।
राजनीतिक विश्लेषक उदयन बंदोपाध्याय ने कहा, वे जिस स्कूल की राजनीति कर रहे हैं, मेरा मतलब है कि भाजपा और टीएमसी दोनों, बोस की राजनीतिक विचारधारा से मेल नहीं खाते हैं। इसमें उनकी विचारधारा का कोई प्रतिबिंब नजर नहीं आ रहा है। वे इस अवसर का उपयोग बिना किसी संदर्भ के सार्वजनिक भावनाओं को अपने पक्ष में करने के लिए कर रहे हैं। यह स्वतंत्रता किंवदंती का अपमान है और हम बंगालियों को उनकी 125वीं जयंती पर नेताजी के लिए किए जाने वाली गतिविधियों पर बहुत शर्म आ रही है।
इस बीच, भाजपा की राज्य इकाई ने 23 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोलकाता में एक जनसभा को संबोधित करने का अनुरोध किया है। सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तदनुसार एक कार्यक्रम तैयार करने की कोशिश कर रहा है। बोस की जयंती के अवसर पर, भगवा ब्रिगेड भी पीछे नहीं रहना चाहती है और उन्होंने राष्ट्रीय नायक को श्रद्धांजलि देने के लिए दिन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजित करने का फैसला किया है।
