
वे मध्य कश्मीर के बडगाम जिले के शेखपोरा में एक छोटे से अपार्टमेंट में रहते हैं जबकि उनके माता-पिता जम्मू में रहते हैं।
90 के दशक के शुरू में घाटी में सशस्त्र आतंकवाद भड़कने के बाद लगभग 3,00000 कश्मीरी पंडित कश्मीर से पलायन कर गए थे।
कश्मीरी पंडितों को फिर से बसाने की योजना कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान शुरू की गई थी और इसे कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए किए गए सबसे महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में देखा गया था।
कश्मीर में 3,000 कश्मीरी पंडितों को उनके परिवार के साथ बसने के लिए सरकारी नौकरी दी गई। लेकिन कश्मीर लौटने और सुरक्षा चिंताओं के बावजूद वहां रहने वाले कश्मीरी पंडितों की मुश्किलों का कोई अंत नहीं है। उन्हें राशन कार्ड और वोटर कार्ड जैसी चीजें लेने के लिए जम्मू जाना पड़ता है। लेकिन नुकसान की एक बड़ी भावना अपने समुदाय से दूर कश्मीर में अलगाव में रहने में है।
संजय रैना ने कहा, हमारे मुद्दे अनसुलझे रह गए हैं, हमारे परिवार परेशान हैं, परिवार के कुछ सदस्य जम्मू में रह रहे हैं, जबकि अन्य श्रीनगर में हैं, यह असली माइग्रेशन है।
ज्यादातर कश्मीरी पंडितों का कहना है कि वे परित्यक्त महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनकी वापसी महज चुनावी राजनीति में सिमट कर रह गई है, जिसमें राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्रों में उनकी वापसी की बात कर रहे हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से कुछ नहीं कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जहां तक कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का सवाल है, सरकार के पास योजना का अभाव है।
रैना ने कहा कि कश्मीर लौटने पर नौकरी पाने के हकदार समुदाय के शिक्षित सदस्य मोहभंग जैसा महसूस कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडितों के लिए पैकेज की घोषणा की गई थी लेकिन कभी पूरी तरह से लागू नहीं किया गया।
वे कश्मीर में अपने पुनर्वास के बारे में बिना किसी स्पष्टता के अपने ही देश में प्रवासी हैं।
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