
Pregnancy tourism: ये विदेशी महिलाएं सिर्फ गर्भवती होने के लिए हमारे भारत देश में इस जगह पर......... आती हैं।

Pregnancy tourism: These foreign women come to this place......... in our country India just to get pregnant.
Pregnancy Tourism: एक जर्मन महिला लद्दाख आती है,और एक स्थानीय व्यक्ति के साथ संबंध बनाकर गर्भवती होती है। वह गर्भवती होने के लिए ही लद्दाख आई थी। वह अपने देश से इतनी दूर एक विदेशी व्यक्ति के साथ संबंध बनाने के लिए क्यों आई थी ?
इसकी वजह यहां के ब्रोकपा समुदाय के लोग हैं। लद्दाख की सिंधु घाटी में बिआमा, दाह, हनु और दारचिक नाम के गाँव हैं। यहां रहने वाले ब्रोकपा समुदाय के करीब ५००० हज़ार लोग खुद को शुद्ध आर्य वंशज मानते हैं।
इंटरनेट के प्रचार और प्रसार से इन ब्रोकपा लोगों के बारे में जानकारी पूरी दुनिया के कोने-कोने में पहुंच गई। कहा जाता है,कि विदेशी यहां 'प्रेग्नेंसी टूरिज्म' के लिए आते हैं। कई लोग कहते हैं कि ये ब्रोकपा लोग 'आर्य' हैं। इसलिए विदेशी महिलाएं यहां गर्भवती होने के इरादे से आती हैं, ताकि वे स्थानीय पुरुषों के साथ संबंध बनाकर शुद्ध आर्यन बच्चों को जन्म दें। लेकिन ब्रोकपा के लोग इसके बारे में ज्यादा बात करना पसंद नहीं करते। उन्हें लगता है कि इससे हमारे समाज की बदनामी होगी।
२००७ में संजीव सिवन ने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, उसका नाम है 'द एटथ बेबी... इन सर्च ऑफ प्योरिटी' ये डॉक्यूमेंट्री प्रासंगिक साक्ष्य प्रदान करती है। बिआमा गांव के एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर यह जानकारी दी, की 'कुछ साल पहले मैंने जर्मनी की एक महिला के साथ लेह के एक होटल में दिन बिताया था। इसके बाद वह गर्भवती हो गई,और कुछ साल बाद वह अपने बेटे के साथ मुझसे मिलने आई'।
जानिए, इस समुदाय की विशेषताएं क्या हैं ?
यह समुदाय खुद को 'शुद्ध आर्य' मानता है। ब्रोकपा समुदाय की एक लड़की ल्हामो कहती है की, "हम यह सुनकर बड़े हुए है,कि हम आर्य हैं। आपने सुना होगा कि आर्य लंबे होते हैं। हमारे समुदाय के सभी पुरुष ऐसे ही हैं। हम प्रकृति की पूजा करते हैं,और यह इस बात का प्रमाण है,कि हम शुद्ध आर्य हैं"। बाकी लद्दाख की तुलना में बियामा, गारकोने, दारचिक, दाह और हनु के लोगों के चेहरे बहुत अलग दिखते हैं। कुछ साल पहले एक जेनेटिक रिसर्च से पता चला था, कि आर्य बाहर से भारतीय उपमहाद्वीप में आए होंगे।ब्रोकपा लोगों पर वैदिक संस्कृति का प्रभाव उनके कर्मकांडों से ही देखा जा सकता है।
ब्रोकपा समुदाय के एक पुरुष ' स्वांग ' कारगिल के एक कॉलेज में शिक्षक हैं। वह ब्रोकपा कॉम्प्लेक्स पर शोध करते है। वे कहते हैं,की "हमारी संस्कृति वैदिक संस्कृति से जुड़ी है। हमारी भाषा भी संस्कृत से प्रभावित है। उदाहरण के लिए हम घोड़े को अश्व कहते हैं। हम देवी-देवताओं की पूजा करते हैं"। कुछ इतिहासकारों ने इस पर शोध भी किया है। ए.एच. फ्रेंकी ने भी अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ वेस्टर्न तिब्बत' में इन 'शुद्ध आर्य' लोगों का जिक्र किया है। स्वांग कहते हैं, "कई लेखक दावा करते हैं कि हम 'अलेक्जेंडर द ग्रेट' के वंशज हैं"। वहीं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की ' कलश ' जनजाति, हिमाचल प्रदेश की ' मलाणा ' और बड़ा भंगाल गांव के लोग भी सिकंदर के वंशज होने का दावा करते हैं। ब्रोकपा लोगों का दावा है, कि संस्कृत और उनकी भाषा में काफी समानताएं हैं।
ब्रोकपा लोगों की लोककथाओं पर एक नज़र डालने से कुछ बातें सामने आती हैं। उनके पूर्वज ७वीं शताब्दी में पश्चिमी हिमालय से गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में चले गए थे। वर्तमान में यह क्षेत्र पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है। ब्रोकपा लोग हर साल अक्टूबर के महीने में ' बोनोना ' नामक उत्सव का आयोजन करते हैं। यह त्योहार हर उस गांव में मनाया जाता है, जहां ब्रोकपा लोग रहते हैं।
स्मार्ट फोन के आगमन के बाद, उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ है। सोशल मीडिया के जरिए वे सीमा पार अपने समाज के लोगों से,भी संपर्क में हैं।
