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पुत्र द्वारा बनाया गया पिता का.......ताकि घर से निकलते समय और वापस आते समय पिता को देख सके.........!

A father made by his son. So that you can see the father when leaving the house and coming back ....!
एक किसान को दुनिया के लिए खाना कमाने वाला कहा जाता है। इस महाराष्ट्र, वास्तव में इस भारत देश में किसानों की जो दयनीय स्थिति है, वह चिंता का विषय है। कल, महाराष्ट्र में पंचगनी के खिंगार गांव में एक भावनात्मक प्रशंसा समारोह देखने का सौभाग्य मिला। स्वर्गीय किसान दौलती दुधाने उर्फ भाऊ का एक साल पहले दिल का दौरा पड़ने से दुखद निधन हो गया था, पिछले महीने ही उनके निधन के उपलक्ष्य में श्राद्ध और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए गए थे। भाऊ ने, तीनों बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर घोर गरीबी से ऊपर उठे स्वावलंबी और स्वाभिमानी 'भाऊ' ने अपने जीवन में अनेक राजनीतिक पदों को धारण किया था। ग्राम पंचायत से कृषि उत्पन समिति तक का संक्षिप्त राजनीतिक सफर तय किया था। मुख्य रूप से एक उत्कृष्ट किसान और कृषि-उद्यमी के रूप में जिसे जावली, महाबलेश्वर, वाई तालुका में देखा जाता था, कृषि में एक विशेषज्ञ के रूप में उनके काम का सम्मान के साथ उल्लेख किया जाता है।
पहाड़ी पर खेती कैसे करें? इसकी तकनीक कैसे विकसित करें? उसके लिए प्रशासन की मदद कैसे लें? ऐसा लगता है,कि इस बारे में उनसे ज्यादा पंचक्रोशी में कोई नहीं जानता था। उनके, साथ-साथ दूसरे किसान भी अपनी आधुनिक खेती करते हुए पीछे न छूटे, इस का खयाल भी भाऊ रखते थे। मार्केट कमेटी में विशेषज्ञ के रूप में काम करते हुए भाऊ ने, जावली और महाबलेश्वर तालुका में कई लोगों को खेती के बारे में गाइड किया और परसों तक करते रहे...!
भाऊ को महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा "कृषिरत्न" के रूप में सम्मानित किया गया था। भाऊ, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में कुल मिलाकर १६ पदों पर काम कर चुके थे। भाऊ के जाने से एक बहुत बड़ा खालीपन रह गया है, लेकिन भाऊ ने अपने बच्चों को रोना नहीं, लड़ना सिखाया है। भाऊ के तीनों बच्चे अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं। अनिल उर्फ अन्ना, संजय उर्फ संजू भाऊ, धनंजय अपने-अपने क्षेत्र यानी कृषि, उद्योग, अनिल, इतिहास अनुसंधान में बड़ी ईमानदारी से काम कर रहे हैं। आज के दौर में जहां युवा अपने पिता का नाम पूरी तरह से अपने नाम के आगे लगाने में शर्म महसूस करते हैं, वहीं इन तीनों युवाओं ने अपने पिता की एक पूरी एक्शन मेमोरियल मूर्ति खड़ी कर दी है और ये प्रेरणादायक है। अन्ना कहते है की, "जब मैं घर से काम पर निकल जाऊ और घर वापस आते वक़्त मुझे अपने पिता को अवश्य देखना चाहिए"।
आज के कलियुग में ऐसे भी पुत्र होते है, ये आज हमने पहली बार देखा। यहाँ से बच्चे पढाई और नौकरी के लिए विदेश जाते है। इस के विपरीत भाऊ के, इन तीनो लड़को ने अपने पिता ने जो काम किया है, वही करने की सोची है। जीवन के अंत में आपको इतना कमाना चाहिए कि आपके बच्चे आप पर शर्मिंदा न हों! पर इतना भी मत कमाओ की तुम्हारे बच्चे बिगड़ जाएँ..! यह समीकरण इन भाइयों के मामले में सटीक रूप से लागू होता है।
यह देश संस्कारों का है, यह महाराष्ट्र भूमि शिवजी महराज की है और यहां प्रभु रामचंद्र की शिक्षा हैं। यह भूमि संतों द्वारा पावन है। कल कार्यक्रम स्थल पर इस प्रशंसा समारोह को देखने के लिए कई राजनीतिक, सामाजिक, कृषि, इतिहास अनुसंधान और अन्य क्षेत्रों के लोग आए थे,लेकिन बहुत कम लोगों ने इन भाई-बहनों और उनकी माताओं की आंखों में आंसू देखे होंगे।